Amritanj
भारत गांवों का देश है। भारत की आत्मा गांव में बसती है।
ग्रामदेवता, कुलदेवता, अन्नदेवता आदि गांव में रहते हैं। बरगद, पीपल, नीम,
आम आदि सौम्य,शांत, शुद्ध व समृद्ध वातावरण बनाये रखते हैं जिससे
गांव स्वर्ग से कम नहीं है। इधर, शहरी जीवन व वातावरण का व्यापक असर गांव
पर भी पड़ता जा रहा है। जिसके कारण आर्थिक, सामाजिक तथा नैतिक जीवन काफी
प्रभावित हुआ है। परिणामतः आपसी तालमेल, संवाद, सौहार्द आदि बिगड़ते जा रहे
हैं। ठंड के मौसम में लोग गाँव-जवार में घुरा (अलाव) के पास बैठकर
खेती-गृहस्थी की बातें आपस में साझा करते थे, सुख-श्राद्ध में शरीक होने के
लिए विचार करते थें। आज वह सबकुछ आधुनिकता व समाज के कुछेक धूर्त व
छोटभैये नेताजी के चलते धाराशयी हो गए हैं। गाँव में धर्म की धूम मची है।
धूम मचनी भी चाहिए। पर, किसी अन्य लोगों की आस्था व विचारों को ठेस नहीं
पहुँचाते हुए। अब तो आए दिन दंगे-फसाद खबरों की सुर्खियाँ बनी रहे हैं।
कुछेक धर्म के ठेकेदार सीधे-साधे लोगों को उकासवा दे रहे हैं।
इन तथाकथित नेतृत्वकर्ता के पास
गाँव के विकास, समृद्धि, आपसी भाईचारे व प्रमुख रूप से बुनियादी चीजों से
नजर हट चुकी है। इनके लिए न चैपाल है, न शिक्षा -स्वास्थ्य। विद्यालय में
ताकने के लिए वक्त नहीं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ठप पड़ा है कोई वास्ता
नहीं। मुज. जिले के पारू प्रखंड अंतर्गत धरफरी अस्पताल आवारा पशुओ का
चारागाह बन गाया है। अस्पताल में डाॅक्टर और दवा नदारद है। अस्पताल को बंद
हुए वर्षों हो गएं। जहां, दर्जनों गांवों के सैकड़ों गरीब एवं अक्षम लोग
इलाज के लिए आते थे। आज वहीं, स्थानीय लोगों को जिला मुख्यालय या गांव के
झोला छाप डाॅक्टरों पर निर्भर रहना पड़ता है। यह स्थानीय नेताओं के लिए कोई
मुद्दा नहीं।
हरा-भरा गांव स्मार्ट होने के बाद भी बुनियादी सुविधाओं का बाट जोह रहा
है। गांव में शिक्षा, स्वास्थ्य, खेती-किसानी, उद्योग-धंघे आदि की उपयुक्त
व्यवस्था कर दी जाए, तो निश्चित रूप से गांव शहर से अधिक स्मार्ट हो
जायेगा। जहां शहर के लोग काम करने के बाद शुद्ध , हवा व स्वास्थलाभ के
लिए गांव जाना ज्यादा पसंद करेंगे।
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