गोबर गैस, गैसीफायर, बैटरी चलित वाहन से ईंधन को बचने की क़वायद पर्यावरण के हित मे
भारतीय गांवों में दो दशक पहले पशुपालक एवं किसान अपने घर को प्रकाशमान करने के लिए गोबर गैस सयंत्र लगाते थे। गोबर गैस/मीथेन पशुओं के उत्सर्जित पदार्थों को सयंत्र में डालकर इससे लगभग 75 प्रतिश त ऊर्जा उत्पन्न की जाती थी। इसके गैस से भोजन पकाने में सहूलियत होती थी। दूसरी ओर इससे धुंएं नहीं निकलते थे। सयंत्र से निकले अपशिष्ट पदार्थ काफी उपजाऊ होते हैं। आसानी से घर, चूल्हा-चैका के साथ-साथ खेतों को शुद्घ कंपोस्ट मिल जाता है। जमीन
बंजर नहीं होती थी। मिट्टी का पीएच मान संतुलित रहता था। मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती थी।बिहार के मोतिहारी जिले के किसान रामचन्द्र प्रसाद कहते हैं कि मेरे दरवाजे पर 10 साल पहले गोबर गैस का सयंत्र था। रात को दूरा-दरवाजा रौशनी से नहा जाता था। रसोइघर में खाना भी आसानी से पक जाता था। धुंएं नहीं लगते थे। खेतों को पर्याप्त गोबर खाद मिल जाता था। बथान में गाय, भैंस, बैल आदि पशुओं की संख्या भी ठीक थी। पर, आज न बैल है, न भैंस। हरेक महीने एलपीजी गैस सिलेंडर पैसे लगाकर लेना पड़ता है। आसपास में भी गोबर गैस सयंत्र था पर, आज पूरे गांव में एक भी सयंत्र चालू अवस्था में नहीं है। सबके-सब ठप पड़ गए हैं।
पर्यावरण को संतुलित रखने एवं धरती के तापमान को नियंत्रण के लिए गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों यानि वैकल्पिक ऊर्जा की ओर ध्यान देना होगा। धरती के प्राणियों के लिए कमरतोड़ महँगाई से निजात पाने के लिए वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल करना होगा। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री ने कहा कि पेट्राॅल-डीजल की महंगाई पर लगाम लगाने के लिए वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की ओर ध्यान देने की जरूरत है। देश में बिजली की आपूर्ति मांग से अधिक है। देश में पेट्राॅल-डीजल की जगह इलेक्ट्रिक वाहन की हिस्सेदारी की ओर ध्यान देना होगा। सरकारी स्तर पर इलेक्ट्रिक वाहन के लिए उन्नत किस्म की बैटरी निर्माण की भी कवायद हो रही। इन दिनों शहरी लोगों में इलेक्ट्रिक वाहन की ओर रूझान बढ़ रहा है। आटो कंपनियां भी बैटरी पर चलने वाली गाड़ियों को प्रमोट कर रही हैं।
विडंबना ही है कि कुछ वर्ष पहले से ग्रामीण क्षेत्रों में अन्न की भूसी कचरा
से चलने वाले गैसीफायर भी ठप पड़ चुके हैं। कम-से-कम स्थानीय आवश्यकता के
हिसाब से टोले-मुहल्ले में बिजली की आपूर्ति हो जाती थी।
यह जरूर है कि
बिजली महंगी पड़ती थी, पर इससे गांव रौश न हो जाता था। खासकर पश्चिमी
चंपारण, पूर्वी चंपारण तथा पिछड़े जिले में गैसीफायर सयंत्र वरदान से कम
नहीं था। दूसरी ओर दो-तीन लोगों को रोजगार भी मिल जाता था। गैसीफायर सयंत्र
से जैविक पदार्थों या जीवाश्म को सयंत्र के जरिए कार्बन मोनोआक्साइड,
हाड्रोजन, कार्बन डाइआक्साइड, मिथेन आदि में बदलकर ऊर्जा प्राप्त की जाती
है। इस गैस को ‘सिंथेटिक गैस या प्रोड्यूसर गैस’ भी कहा जाता है। गैसीफायर
सयंत्र केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सफलता से चल रहा है।
गोबर गैस सयंत्र के फायदे:
गांवों
में उपलो/गोइंठा से खाना पकाया जाता है। इससे गोबर में उपलब्ध पोषकतत्व जो
पेड़-पौधों के लिए लाभदायक हैं वे नष्ट हो जाते हैं। खासकर ग्रामीण
क्षेत्र की महिलाओं को उपले तैयार करने में घंटों लग जाते हैं । इससे
महिला स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। नाखून, हाथ, पैर आदि प्रभावित भी
हो जाते हैं। गोबर गैस सयंत्र से निकलने वाला मिथेन ज्वलनशील होता है,
जिससे पर्याप्त मात्रा में रसोइ गैस तथा घर को प्रकाश मिल जाता है।
मुख्य बिन्दु:-
1. गेबर गैस ग्रामीण इलाकों के लिए उपयोगी तथा वातावरण की शुद्धा के लिए अनुकूल है।
2. गेबर गैस में डाले जानेवाना कचरा, गोबर ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से उपलब्ध है।
3.
इससे भोजन आसानी से पकाया जाता है। जिससे लकड़ी की आवश्यकता नहीं पड़ती
फलतः वृक्षों का संरक्षण भी हो जाता है व पर्यावरण संतुलित रहता है।
4.
ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को आंख-सांस संबंधी बीमारी होने के कारणों
में से एक है लकड़ी या उपलों से खाना बनाना। गोबर गैस सयंत्र से जलने वाले
चूल्हे से धुंएं नहीं निकलते जिससे स्वास्थ्य की समस्या उत्पन्न नहीं होती।
5. सयंत्र के अपषिष्ट पदार्थ खेतों के लिए उपजाऊ खाद के रूप में इस्तेमाल होता है।
गोबर-धन योजना:
ग्रामीण
भारत के लिए यह योजना पर्यावरण तथा स्वच्छता के साथ-साथ गांवों को स्वच्छ
बनाना व जैविक अपशिष्ट पदार्थों से ऊर्जा उत्पन्न करना है। बायोगैस से
सीएनजी में परिवर्तित करना लाभप्रद है। 19वीं पशुधन जनगणना के अनुसार भारत
में लगभग 30 टन गोबर प्राप्त होता है। परंतु इतना के बावजूद भारत इसका
यथोचित लाभ नहीं उठा पा रहा है। कारण साफ है लोगों में इसके प्रति उदासीनता
का भाव है। गोबर धन की तरह है। इससे रोजगार के साथ-साथ वातावरण की शुचिता
बरकरार रखी जा सकती है। ग्रामीण भारत में स्वच्छता को प्रभावी बनाने के लिए
भारत सरकार द्वारा अपशिष्ट पदार्थ से ऊर्जा एवं स्वच्छता की दिशा में
सकारात्मक पहल की जा रही है। यह एलपीजी गैस से सस्ता तथा पर्यावरण का
हितैषी साबित हो सकता है। बशर्ते आम-अवाम में जागरूकता आवश्यक है। खासकर
बिहार में ब्रेडा संस्था के माध्यम से गोबर गैस सयंत्र लगाने की दिशा में
50 प्रतिशत तक अनुदान देने का प्रावधान है। लगभग एक सयंत्र में 24 हजार
खर्च आते है। इसमें भी वर्ग के अनुसार अनुदान देने का प्रावधान है।
बहारहाल,
सरकार के साथ-साथ आमलोगों को भी गैर-पारंपरिक ऊर्जा (वैकल्पिक)की उपयोगिता
को गंभीरता से समझना होगा। सरकारी संस्था- ब्रेडा , स्वच्छता मिशन,
पशुपालन विभाग, कृषि विभाग आदि को ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों को पुनः
पशुपालन के साथ गोबर गैस सयंत्र लगाने की सफल कोशिश करनी पड़ेगी। सभी
भारतीयों को ऊर्जा संरक्षण तथा उपयोगिता के प्रति सचेत होना पड़ेगा।
बायोडीजल, गैसीफायर, बैटरी चालित वाहन आदि की ओर उन्मुख होना पड़ेगा।
0 टिप्पणियाँ