चरवाहा मत समझो, मैं भी चलाता हूं फेसबुक
योजनाओं में शुचिता-पारदर्शिता का वाहक बन सकता है मोबाइल
(पश्चिमी दियारा इलाके की पार्वतिया, सुनैना, द्रौपतिया, सुमित्रा आदि महिलाएं खेतों में रोपनी व निकौनी करते हुए बड़े चाव से एफएम या मूवी मस्ती व म्यूजिक धुन में गुनगुनाते हुए काम में मग्न रहती हैं। काम के धुन के साथ संगीत के धुन थकान को कम करता है। )
- अमृतांज इंदीवर
एक दशक पहले तक गांव-कस्बों में सूचना तकनीक की पहुंच न के बराबर थी। संपन्न गांवों में ग्रामीण टेलीफोन (वीपीटी) या लंडलाइन की कहीं-कहीं व्यवस्था थी। यकीन मानिए सुबह से लेकर रात तक पीसीओ पर लोगों का जमावड़ा लगा रहता था। सबसे ज्यादा महलिाएं व बच्चे अपने पति व पिता से घर का समाचार बताने-पूछने में सौकड़ों रुपये खर्च कर देते थे। सुदूर व पिछडे़ इलाके में तो टेलीफोन के पोल-तार भी दिखाई नहीं देते थे। आम- आवाम टेलीग्राम (तार) के जरिये दूर देश-परदेश काम कर रहे परदेशी को शुभ-अशुभ व शादी-अनुष्ठान का संदेश भेजते थे। उस वक्त सूचना तकनीक से दूर इन गांवों का एक ही विकल्प था, चिट्ठी-पत्री। समय के साथ सूचना क्रांति की पहंुच क्या शहर, क्या गांव सुदूर देहाती इलाके में हो गयी। जिस घर में बिजली नहीं है, आज उन घरों में मोबाइल, टेलीफोन, वाइफाई इंटरनेट के यूजर जरूर मिल जायेंगे। आश्चर्य तो तब होता है, जब कोई अनपढ़ महिला-पुरुष मोबाइल के स्क्रीन पर फेसबुक, वाॅटशॅप, गुगल पेज, यू ट्यूब, पर लाइक्स, काॅमेंट, इमेज, वीडियो, गीत-संगीत आदि को डाउनलोड करते हैं।
सर्वे की मानें तो भारत में 200 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं। जिसमें फेसबुक उपयोगकर्ताओें की संख्या 100 करोड़ है। अब इंटरनेट रोजमर्रा की वस्तुओं में शुमार हो गया है। सरकारी कार्यालय से लेकर प्रतियोगी परीक्षा तक आॅन लाइन आवेदन स्वीकार किया जाने लगा है। हर काम अब इंटरनेट से किया जा रहा है। गरीब, अमीर व मजदूरवर्ग भी राशन से लेकर बीमा तक इंटरनेट के जरिये करने लगे हैं।
अब हम गर्व से कह सकते हैं कि हम आइटी युग में जी रहे हैं। जहां पढ़े-लिखों से ज्यादा कम पढ़े-लिखे व अनपढ़ लोग भी दूर देश या राज्य से बाहर नौकरी व मजदूरी कर रहे अपने परिजनों से बेबाकी से बात कर रहे हैं। इनको मोबाइल खरीदने से पहले एबीसीडी की जानकारी नहीं थी। पर, आज वे धीरे-धीरे अंग्रेजी भी सीखने व पढ़ने लगे हैं। जो काम साक्षरता दर को बढ़ाने में कागज नहीं कर पाया। वह काम आज सूचना तकनीक की वजह से फलीभूत होता दिख रहा है। अनगढे हाथ की अंगुलियां मोबाइल कीपैड पर पड़ती है तो इ-प्रचेजिंग, इ-मार्केटिंग, मनी ट्रांसफर, मोबाइल बैंकिंग आदि बेझिझक, फटाफट हो जाता है। ऐसा लगता है जैसे कोई बहुत पढे़-लिखे व्यक्ति कर रहा है।
मुजफ्फरपुर जिले के रहने वाले कारोबारी प्रभु पटेल पिछले 8-9 वर्षों से सूरत शहर में एक कपड़ा कंपनी के साथ काम करते है। गांव में एक कमजोर व मजदूर परिवार के इस व्यक्ति की पढ़ाई मात्र दूसरी-तीसरी तक हुई है। उसने घर की माली हालत सुधारने के लिए सूरत जाकर कुछ दिन नौकरी की। फिर स्वयं कपड़ा पैकेजिंग का काम शुरू किया। धीरे-धीरे इस काम को करने के लिए 200 से ज्यादा कारीगर व मजदूरों की आवश्यकता हुई। उसने गांव जाकर लोगों को रोजगार से जोड़ा। और पहली कमाई से स्मार्ट फोन खरीदा। क्योंकि कुछ मित्रों ने उसे बताया कि पैसे हाथ में लेकर मजदूरी पेमेंट करना मुश्किल है। आप मोबाइल से पेमेंट करो। जिसे अंग्रेजी का वर्णमाला का ज्ञान नहीं था। आज वह सैकड़ों कामगारों को ई-पेमेंट मोबाइल के जरिया करता है। सभी को फेसबुक से जोड़कर लाइक्स व थैंक्स भी देता रहता है। आज उसके फेसबुक मित्र की कमी नहीं है। धीरे-धीरे ई-मेल भेजना भी सीख गया। आज अंग्रेजी पढ़ने व टूटी-फूटी बोलते हुए गर्व महसूस करता है। पड़ोस के बुजुर्ग व पढ़े-लिखे जलदेव, महेन्द्र ठाकुर आदि लोग कहते हैं कि यह अनपढ़ होते हुए भी लैपटाॅप व खाता-बही व कंपनी के कार्यों को बाखूबी निभा लेता है।
साहेबगंज थाना अंतर्गत करनौल गांव के रहने वाले युवा रकटू यादव (काल्पनिक नाम) का जीविकोपार्जन का साधन मात्र पशुपालन है। दूध के पैसे से वह सारी सुख-सुविधा की वस्तुएं घर में सजाया है। आश्चर्य तब हुआ जब वह भैंस पर बैठकर मैदान की ओर घास चराते हुए, फेसबुक यूज करने में मशगूल था। आसपास के पढ़-लिख रहे लड़कों ने चिढ़ाना शुरू किया तो उसने भैंस से थपाक से उतरते हुए कहा कि तुम क्या समझते हो! मैं भी फेसबुक मित्र बनाया हूं। मैं भी रोज फोटो खींचकर दोस्तों को पोस्ट करता हूं। रकटू को जाननेवाले नीतीश कुमार यादव, बबलू कुमार व पड़ोसी कहते हैं कि भले यह दूसरी-तीसरी तक पढ़ाई की है, पर फेसबुक, गुगल, यू ट्यूब आदि का उपयोग करने में इसकी सानी नहीं है।
इधर, अब गांव की अनपढ़ महिलाओं के हाथों में मोबाइल के रिंगटोन भी मद्धिम पड़ गए हैं। स्मार्ट फोन का चलन ने उन्हें भी फेसबुक मित्र बनाने के लिए प्रोत्साहित किया है। बड़े परिवार की महिलाएं आमतौर पर पढ़ी-लिखी और नयी तकनीक के मामले में दक्ष होती है। वहीं, छोटे व निर्धन परिवार की महिलाएं भी इनसे पीछे नहीं हैं। वीडियो, गेम, मूवी, म्यूजिक आदि को सुनने के लिए कान में इयर फोन लगाये काम में मशगूल रहती हैं। जिले के पश्चिमी दियारा इलाके की पार्वतिया, सुनैना, द्रौपतिया, सुमित्रा आदि महिलाएं खेतों में रोपनी व निकौनी करते हुए बड़े चाव से मूवी मस्ती व म्यूजिक धुन में गुनगुनाते हुए काम में मग्न रहती हैं। काम के धुन के साथ संगीत के धुन में इनके चेहरे पर आनंद साफ झलकता है। पार्वतिया कहती है कि मोबाइल में एफएम या म्यूजिक सुनते हुए काम करने में काफी मन लगता है। आसानी से घंटों काम करने पर भी थकान का एहसास नहीं होता। पार्वतिया इसके पहले खेत में रेडियो ले जाया करती थी। आज रेडियो ले जाने का झंझट समाप्त हो गया और यह सब कर दिखाया एक छोटा से मोबाइल। एक छोटे- से-छोटे हैंडसेट में भी एफएम की सुविधा रहती है। सुनैना कहती है कि उतने पैसे नहीं है कि स्मार्ट फोन खरीदे पर, कम दाम का यह सेट कमाल का है। सुनैना एफएम की दीवानी है। उसे विविध भारती सुनना ज्यादा पसंद है। साइबर दुनिया से जुडे़ नीरज कहते हैं कि साक्षरता के लिहाज से सूचना तकनीकी के माध्यम से गांव के अनपढ़ महिलाओं को जोड़ने की सरकारी योजना बनने चाहिए। मोबाइल के जरिये वे शिक्षा, स्वास्थ व सरकारी योजनाओं को आसानी से समझ सकती हैं। इसके लिए इमेज इफेक्ट के साथ टेक्सट इंफेक्ट या इमेज संकेतों के माध्यम से एजुकेट किया जा सकता है। भावी भारत की निरक्षर महिलाएं भी सरकार की योजनाओं से सीधे जुडेंगी और फिर केंद्र सरकार की योजनाओं को बल मिलेगा।
वस्तुतः ग्रामीण भारत का शत-प्रतिशत विकास सूचना क्रांति से ही नींव का पत्थर साबित हो सकता है। शुचिता व पारिदर्शिता लाने के लिए सरकार को गांव के अधिकांश किसान, मजदूर व गरीब, निरक्षर लोगों को मोबाइल के जरिये कल्याणकारी योजनाओं, स्वास्थ्य व सरकारी घोषणाओं-उपलब्ध्यिों को टेक्सट व इमेज मैसेज के माध्यम से भेजना शासन व सरकार के लिए ज्यादा प्रभावकारी होगा। आम जनता का भी सरकारांे से सीधे जुड़ाव होगा। अपने शिकायत व सलाह को भी हैंडसेट के जरिये रखा जा सकता है। मोबाइल क्रांति का नायाब प्रयोग छतीसगढ़ की धरती पर चर्चित पत्रकार शुभ्रांशु चैधरी ने ‘सीजीनेट स्वर’ के जरिये गांव की समस्या, महिलाओं की समस्या, गांव के मुद्दे को एक मुहिम के तहत गांव के लोगों के हाथों में हैंडसेट पकड़ा कर किया है। यह कंसेप्ट हैंडसेट के आॅडियो रिर्काडर के माध्यम से न्यूज बनाकर मोबाइल धारकों को जमीनी खबरों से रू-ब-रू करा रहा है। इस न्यूज सुविधा के इच्छुक जनता ‘सीजीनेट’ के एक खास कोड संख्या पर मोबाइल से डायल करती हंै और खबरें सुनायी पड़ने लगती है। शुभ्रांशु चैधरी ने मप्र के छतरपुर स्थित गांधी आश्रम में ‘बुंदेलखंड में सुखाड़ और मीडिया की भूमिका’ विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि मोबाइल के जरिये गांव की समस्याओं की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया जा सकता है। जिससे लोग जागरूक होंगे व समस्याएं स्वतः दूर होगी। हाल ही में इस काम को ब्रिटेन में ‘डिजीटल जर्नलिज्म अवार्ड’ से नवाजा गया है। ये पुरस्कार उन्हें जमीनी स्तर पर चलाये जा रहे ‘सीजीनेट स्वर नामक संचार अभियान के लिए दिया गया है। पुरस्कार लंदन स्थित संस्था इंडेक्स आॅन सेंसरशिप ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मुहिम को लेकर देती है। डिजीटल भारत बनाने में मोबाइल की महती भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता।
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