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साहित्य क्षितिज का आंचलिक रेखाचित्र'

यह ब्लॉग उन तमाम पाठकों के लिए है, जो ग्रामीण क्षेत्रों की समस्या, योजना, साहित्य में रुचि रखते हैं।  इसके माधयम से पूर्णतः आलेख, निबंध,  कहानी, उपन्यास, नाटक, प्रहसन, कविता आदि के जरिए आंचल की सजीवता, जीवटता, मधुरता को आपके समक्ष रखने का एक छोट-सा प्रयास है।

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कायापलट

अमृतांज इंदीवर

‘आधी रोटी खायेंगे, फिर भी स्कूल जायेंगे’ के नारे के साथ छोटे-छोटे बच्चे रामपुर गांव की संकरी गलियों से गुजर रहे थे। घर-घर से महिलायें विस्मित होकर बच्चों को निहार रही थी। फटे-चिथड़े कपड़े पहने बच्चे भी इस रैलियों को ललचाई आँखों से देख रहे थे। रैली गाँव की पगडंडियों से होते हुए कुछ टोले को पार कर चुकी थी। पूरा माहौल नारों से गंुजमान था। रामू कुल्हाड़ी से लकड़ी चिरने में मशगूल था; सहसा उसका ध्यान रैली पर जाता है।
मुनिया, गुडि़या, बुनिया........... यह सब त... हमारे गाँव-कस्बे की हीं है। बड़े सलीके से नारा लगा रही है। सचमुच एक दिन यह गाँव का नाम रौशन करेगी।
पास के खेत में अक्लू चाचा काम करते हुए रामू को टोकते हैं- ‘अरे रामू ! तू कहाँ खो गया। काम करो, नही ंतो मजूरी नहीं मिलेगी।’
रामू बच्चों की ओर इशारा करते हुए कहता है, ‘चाचा तनिक इधर आओ। इ... लडि़कन सबके देखत हव’ कितना सुंदर लागत है।’
‘‘रामू, बालमन बड़ा चंचल व उन्मुक्त होता है। ठीक, कोड़ा कागज की भांति। जो भी लिख दो ताउम्र अंकित हो जाता है।’’अक्लू ने कहा।
रामू अक्लू चाचा की बात सुनकर हर्षित हो जाता है। उसके माथे पर नौनिहालों के उज्जवल भविष्य की रेखा उभरने लगती है। रामू प्राइमरी स्कूल तक ही पढ़ाई करके गृहस्थी की जिम्मेदारी को संभालने लगा था। उसकी भी इच्छा थी कि अंग्रेजी मीडियम स्कूल में मैट्रिक तक की पढ़ाई पूरे करें। पर, वक्त ने साथ नहीं दिया पांचवीं कक्षा में ही था तबतक उसकी मां स्वर्गवासी हो गयी। मृत्योपरांत पिताजी योगी होकर देशाटन पर निकल गये। पूरा परिवार दाने-दाने कोमुहताज हो गया। मरता क्या न करता ? उसने मजूदरी करके परिवार की नईया को पार लगाने की कोशिश करने लगा।बच्चों के भविष्य को लेकर रामू को रातभर नींद नहीं आयी। अतीत के दृश्य उसके आंखों के सामने प्रकट होने लगा। मैं निपट-गंवार भी न हुआ, नहीं हाईस्कूल तक की पढ़ाई ही पूरी की। विधाता ने कैसा भाग्य बनाया। मैं भी अक्लू चाचा जैसे पढ़े-लिखे और मान-प्रतिष्ठा वाला होता।
रामू अक्लू चाचा के बथान जाता है। अक्लू गाय-बैलों को दाना-साना देकर हाथ में तंबाकू की चुटकी लगाता रहता है। अचानक रामू को देखकर चाचा के बांछे खिल जाते हंै। रामू चाचा को षष्टांग दंडवत करते हुए आशीर्वाद लेता है।
‘चाचा, मेरी इच्छा है कि क्यों न गाछी टोला स्कूल का भ्रमण कर लिया जाये।’ रामू ने कहा।
अक्लू चाचा- ‘जरूर...जरूर..! कई साल हो गये स्कूल की हालत देखे हुए।’
अक्लू एक लोटा पानी लेकर आचवन किया। धर्मपत्नी को पुकारता है- अरे भाग्यवान! मेरा कुर्ता-बंडी, धोती व गमछा कहां है? जरा, रामू के लिए एक कप चाय भी लेते आना।’ चाय पीते हुए अक्लू अपनी गमछी संभालता है। दोनों स्कूल की ओर रूख करते हैं। अक्लू दो साल के बाद फुर्सत निकालकर स्कूल की ओर चला, उसके मन में बचपन की यादें ताजा हो रही थी।
यह वही पाठशाला जहां, मैं मिश्राजी से पढ़ा करता था। मिश्राजी अनुशासनप्रिय, सुहृदय व कवि मिजाज के थे।
‘यह कदम का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे
मैं भी इस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे....’
कितना लय और भाव से पढ़ाते थे। स्मृतियों में खोये-खोये स्कूल के पास करीब 10 बजे पहुंचा, तो कुछ बच्चे उधम-कूद मचा रहे थे। स्कूल का दरवाजा बंद था। स्कूल परिसर में गंदगी का अंबार था। बरामदे की छत टूटकर झुकी हुई थी। पेड़-पौधे सूखे हुए थे। बरामदे में टूटा हुआ चूल्हा, चूल्हे के इर्द-गिर्द चावल, दाल, सब्जियां पसरी हुई थी। चूल्हे के पास दुबककर बिल्ली जूठन को चटकरने की फिराक में अपनी नजरें फिरा रही थी। देखते-देखते दो घंटे गुजर गये। मास्टर व मास्टरनी साहिबा नदारद रहें।
अक्लू दीन-हीन दशा, कुव्यवस्था को देखकर सन्न रह गया।
‘दुर्दशा.! हाय रे जमाना! उफ !यहां तो दम घूट रहा है। समाज, सरकार से लेकर मास्टर साहब की बाबूगीरी में बच्चों का भविष्य अंधकार में जा रहा है।’ रामू ने कहा।
‘रामू, बीस वर्षों में इतना कुछ बदल गया।’ अक्लू ने कहा।
चाचा, कैसे न बदलेगा, प्रधान शिक्षिका जो मुखिया जी की धर्मपत्नी है।’(व्यंग्य करते हुए रामू ने कहा।)
ठीक बारह बजे स्कूल की शिक्षिका रूमा देवी पति के साथ हीरो-होण्डा से पहुंचती है। आंखों पर चमकीले फ्रेम का बना काला चश्मा, गुलाबी रंग की साड़ी, होठ लिपिस्टिक की लाली से सना हुआ, आंचल सिर की बजाय कंधों पर सिमटा हुआ, मानों किसी फिल्म की शूटिंग होने वाली हो।
सारे बच्चे जोर-जोर से अभिवादन करते हैं-‘प्रणाम मेडम, प्रणाम मेडम !
‘राहुल, किरण... जल्दी से प्रार्थना की घंटी लगाओ।’ (मास्टरनी साहिबा ने कहा।)
टुन...टुन...टुन.. घंटी बजी कि बच्चे कतारबद्ध हो गये। जन-गन-मन.......
एक ही बरामदे में 1 से 5 तक की कक्षा लगी। (सभी बोड़ी बिछाकरबैठ गये।)
मास्टरनी साहिबा किताब का मौन वाचन करने का अनुदेश देती है। सभी बच्चे किताब का मनन करने लगते हैं। मास्टरनी साहिबा फैंसी पर्स से ऊन और कुरूस (ऊन बुनने वाली सूई) निकालकर स्वेटर बुनने लगती है। आहिस्ते-आहिस्ते बच्चे किताब छोड़ मैदान में दौड़ जाते हैं। मैडम अपने काम में तल्लीन रहती है।
‘रामू, अरे यह स्कूल है या बाबा का बथान।’ (अक्लू खींज कर कहता है।)
चाचा, गांव के बिगड़ैले लड़के दौड़ते हुए गाते-गुनगुनाते हैं- ‘बारह बजे लेट नहीं, दो बजे भेंट नहीं। शायद, जुमला यहां फिट बैठता है।’ (रामू ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा।)
‘हां, बिल्कुल ठीक।’ अक्लू ने कहा।
‘मैडम जी दंडवत् !आपको सरकार स्वेटर बुनने की तनख्वाह देती है। बच्चे बस्ता छोड़कर धमा-चैकड़ी मचा रहे हैं और आप जो हैं सो......।’(रामू हिम्मत जुटाकर मैडम का अभिवादन करते हुए कहा)
आप कौन होते हैं, पूछने वाले?’ शर्म नहीं आती गांव-घर की बहू से इस तरह बात करते। मैं मारे शर्म के घूंघट करते जा रही हूं।’ मैडम ने कहा।
‘वाह जी वाह! घूंघट की ओट में स्वेटर बुनते शर्म नहीं आती।’ रामू ने कहा।
जाईये..जाईये ! मुखिया जी से टोह लीजिए। उनकी अर्धांगनी यहां की हेडमास्टर है। केवल 26 जनवरी और 15 अगस्त को तिरंगा फहराने आती है। लंबा-चैड़ा भाषण देकर सालांे-साल गयाब रहती है। क्या उसकी कोई खोजखबर गांव वालों को है। (झल्लाते हुए मैडम ने कहा।)
रामू व अक्लू के पैरों तले जमीन खिसक गयी। स्तब्ध, निरूतर व सन्न रह गया। अक्लू मैडम से मुंह नहीं लगाना चाह रहा था। जमाना बदल गया है क्योंकि स्त्रियों से मुंह लगना अच्छी नहीं।
‘बड़ा आया है, स्कूल सुधारने।’ मैडम ने कहा।
अक्लू और रामू गांव के बुजुर्ग व गणमान्य लोगों के साथ चैपाल आहूत किया। सभी बिरादरी से करीब दो सौ से अधिक लोग पीपल के पेड़ के छांव में चैपाल बैठे। रामू ने स्कूल की जीर्ण-शीर्ण हालत की ओर मुखातिब किया। कुव्यवस्था को लेकर नागरिक मोर्चा बनने की पहल हुई। जिला शिक्षा अधिकारी को आवेदन देने का विचार हुआ। मुखिया ने चैपाल में आने से आनाकानी की। जिससे लोगांे में रोष का माहौल बन गया। टेलीफोन के माध्यम से रामू ने मुखिया को चैपाल के निर्णय से अवगत कराया पर, नतीजा सिफर रहा।
‘मैं इस पंचायत का मुखिया हूं। मेरी मर्जी । मेरा कोई बाल बांका नहीं कर सकता। मेरी पत्नी नियमित स्कूल जाने के लिए हीं हेडमास्टर बनी है ? तुमलोग कब समझोगे।’
रामू ने शिक्षा अधिकारी से शिकायत की। आरजू-मिन्न्तें की। तीन महीने में चप्पल की एड़ी घिस गयी पर, शिक्षा अधिकारी के कान पर जूं न रेंगा। दुबारा यत्न करने पर जिला मुख्यालय से अधिकारियों ने जांच टीम का गठन करके स्कूल निरीक्षण को भेंजा। अधिकारी गांव पहुंचकर स्कूली की बदइंतजामी को डायरी में दर्ज किया। स्थानीय लोगों से बारी-बारी मघ्याह्न भोजन, छात्रवृति, चापाकल शिक्षण कार्यों से संबंधित सवाल-जवाब किए।
‘साहब, गांव के सबसे पुराना स्कूल है। हमसब के बचवन सब यहां पढ़त-बढ़त है। कृपा करें, इन बच्चों की मासूमियत पर तरस खायें।’ रामू ने अधिकारी से याचना भरे स्वर में कहा।
‘बेफ्रिक रहिए !जल्द कार्रवाई होगी।’ शिक्षाधिकारी ने कहा।
कुछ दिन से महीने गुजर गये, सल बदल गया। जाड़ा से गर्मी आ गयी। चहुंओर लोग रबी फसलों की कटाई-गुड़ाई में व्यस्त हो गये। लेकिन रामू स्कूल की विधि-व्यवस्था की सुधार का बाट जोहते रहा। स्कूल की स्थिति दिनोंदिन बिगड़ती गयी। अधिकारी का आश्वासन ढाक के तीन पात साबित हुआ। पुनः रामू जिला शिक्षाधिकारी से मिला और सुधार नहीं होने की शिकायत की।
‘जाओ, जाओ ! बड़ा आया समाज सुधारने। तुम लोगों को खिचड़ी, भवन निर्माण व छात्रवृति राशि से कमीशन मिला कि तुम लोग चुपी साध लोगे।’
‘हुजूर, नसीहत अपने पास रखिए।’ रामू ने कहा।
मुखिया से पंगा मत लो। वरना, किसी स्कीम का फायदा नहीं मिलेगा।’ अधिकारी ने गुस्से में कहा।
पंगा, हूं ! मैं चलता हूं। रामू ने कहा। प्रणाम हुजूर !
रामू गांव लौटा तो मालूम चला कि मुखिया जी लोगों को चापाकल, सोलर लाईट, पेंशन आदिबेरोकटोक दे रहे हैं। केवल अक्लू व रामू का लिस्ट में नाम नहीं है। गांव के एक बुजुर्ग ने कहा कि यहां रेवडि़यां इसलिए बांटी जा रही क्योंकि लोग स्कूल की चिंता छोड़ दे।मुखिया ने रिश्वत के बल पर जांच-पड़ताल की रिपोर्ट को निरस्त करवा दिया है।  यह बात दावानल की तरह पूरे गांव में फैल गयी। पढ़े-लिखे लोगों ने रामू को समझाया - ‘घोर कलियुग है। आम खाओ, गुठली गिनने के फेरे में मत पड़ो। पास के ज्ञान भारती स्कूल में अपने बच्चों का नामांकन करवा डाल। क्यों इस पच्चरे में पड़कर समय बर्वाद करने पर तुले हो। चलो, चलो मुखिया जी तुम्हें निहाल कर देंगे।’
रामू का भौं तन गया। माथे पर पसीने की बूंद टप-टपकर धूल धूसरित होने लगी। व्यग्र होकर सोचने लगा कि गांव में सबसे ज्यादा जाहिल-गंवार और मजलूमपरस्त  लोग हैं। थोड़े से लाभ के लिए लोग अपना धर्म-कर्म भूलकर भ्रष्ट, दुराचारी, अकर्मण्य और निकम्मे हो गयें। सभी लालची सियार बन गये हैं।
सप्ताह बितने के बाद अक्लू अपने खेत के मचान पर बैठा था। खेती की पगडंडी से होते हुए रामू पहुंचा।
‘चाचा, प्रणाम! किस सोंच में पड़े हैं?’ रामू ने अभिवादन करते हुए कहा।
‘रामू स्कूल का क्या होगा ? अक्लू ने कहा।
‘चाचा, एक उपाय है।’ गांव के अधिकांश लोग स्कूल की दुर्दशा से अनभिज्ञ हैं। और मुखिया के काले करनामों को नहीं जानते हैं। मीडिया भी खबरों को तोड़-मरोड़ कर छाप रहा है। यानि, नेता, मीडिया व अधिकारी सबके-सब भ्रष्ट होते जा रहे हैं। इन समस्याओं को खबर बनाकर रात्रि पहर में गांव के चैराहों से सटे दीवाल पर लिखा जाये।’
‘कमाल का तजुर्बा है। एकदम ठीक। सांप भी मर जायेगा और लाठी भी बच जायेगी। चलो, आज मध्य रात्रि से इस तजुर्बे को अजमाया जाये।’ अक्लू ने कहा।
रात के दूसरे पहर में सभी गांववाले नींद के आगोश में थे। कुते भौंक रहे थे। चारों ओर सन्नाटे के बीच कीड़े-मकोड़े की ध्वनि से अंधेरी रात और डरावना होती जा रही थी। दरवाजे पर केवल पशु बांधे हुए थे। रामू व अक्लू दोनों हाथ में कूची, रंग व खबर से संबंधित कागज के पन्नों को हाथ में मद्धिम रौशनी वाली टर्च लिए चल पडें। रामू को डर लग रहा था कि कोई चोर न समझ बैठे।
‘चाचा, जरा संभलकर, पांव की आवाज न आने पाये।’ रामू ने अक्लू के कान में कहा।
चार-पांच घर के बीच की सड़क से सटे दीवाल पर अक्लू ने खबरों को लिखना शुरू किया-
नमस्कार! अदाब! सलाम!
गांव की ताजा खबर...
भाईयों एवं बहनों,
सावधान!
‘‘गाछी टोला स्कूल के हेडमास्टर ने गटकी छात्रवृति-पोशाक की राशि।‘’
दूसरी रात
‘स्कूल में घोर अनिमितता, मध्याह्न भोजन बंद राशि की बंदरबांट।’
‘स्कूल में 12 बजे तक शिक्षक नदारद।‘
‘रजिस्टर में 350 बच्चे नामांकित, हाजिरी केवल 10 की।’
तीसरी रात
’शिकायत करने पर मिली मुखिया से धमकी।
शिक्षा अधिकारी ने कार्रवाई के नाम पर की लीपापोती।’
चैथी रात-
नमस्कार !
आप कब तक सोये रहोगे, जागो, जागो!
नन्हें-मुन्ने का जीवन बचाव।
शिक्षा अधिकार कानून का सत्त करो पालन।
शिक्षा नहीं तो जीवन नहीं, सुख-समृद्धि शांति,
बंधुत्व, संस्कार, संस्कृति का हो जायेगा काम तमाम।’
जागो, जागो देशवासियों! जागो।
वाॅल पत्रकारिता की खबरें जंगल की आग की तरह गांव-कस्बों में तेजी से फैल जाती है। चहुंओर खलबली मच जाती है। सबकी आंखें खुल जाती है। मुखिया व जिला शिक्षा पदाधिकारी के खिलाफ धरना प्रदर्शन की दौड़ चल पड़ती है। अंतोगत्वा शिक्षा अधिकारी गांव पहुंचते हैं। गांव में चहुंओर शिक्षा अधिकारी के खिलाफ नारेबाजी होने लगती है- शिक्षा अधिकारी मुरदाबाद, मुरदाबाद, मुरदाबाद!
बंधक बन अधिकारी ने लोगों की जायज मांगों को पूरा करने का वचन दिया। स्कूल की हेडमास्टर को बर्खास्त किया गया। गाछी टोला स्कूल की कायापलट हो गयी। निर्धन बच्चों का भविष्य उज्जवल हो गया। गांव के लोगों ने रामू और अक्लू की नेकदिली, बहादुरी, परोपकार और क्रांति को सलाम किया।

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