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पक्षियों की मधुरिम ध्वनियां मंद पड़ रही है

 पक्षियों की मधुरिम ध्वनियां मंद पड़ रही है 

भारत में तकरीबन 1333 पक्षियों की प्रजातियां मौजूद है

अमृतांज इंदीवर

विकास की इस अंधीदौड़ में पक्षियों की मधुरिम ध्वनियां मंद पड़ती जा रही है। भारत में आये दिन देखे जाने वाले पक्षियों की तादाद घटती जा रही है। पक्षियों की कई प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर है। एक तरफ वैज्ञानिक पक्षियों की प्रजातियों के संरक्षण व संवर्द्धन में जुटे हैं, तो वहीं ग्लोबल वार्मिंग, फैक्ट्रियों से निकलने वाले जहरीले गैस, रासायिनक खेती, मोबाइल टावर के रेडियेशन, प्राकृतिक आपदा आदि की वजह से सैकड़ों पक्षियों की प्रजातियां विलुप्त हो रही है।

 अब सुनाई नहीं पड़ती कोयल की कूक

गांव की सुबह अब चिडियों के कलरव से गुलजार नहीं हो रही। सुबह की ठंडी हवा के साथ-साथ चिडियों की टोली पेड़ों की डालियों पर ध्वनि नाद नहीं करते। कोयल की कूक नहीं सुनाई पड़ती। अब गांव वीरान पड़ते जा रहे हैं। गांव में यदाकदा दिखने वाले- गिद्ध, गोरैया, मोर, कठफोड़वा, कौवा, बगुला, तोता-मैना, फुदगुदी, बटेर, कबूतर आदि पक्षियों की मधुर ध्वनियों को सुनने के लिए लोग बेताब हैं। 

 ‘स्टेट आफ इंडिया.2020’ की रिपोर्ट
पक्षियों पर अध्ययन करने वाली संस्था- ‘स्टेट आफ इंडिया.2020’ के रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगातार पक्षियों की संख्या घटना चिंता का विषय है। भारत में तकरीबन 1333  पक्षियों की प्रजातियां मौजूद है। पक्षियों की कुल आबादी के पांचवें हिस्से को 25 वर्षों में भारी गिरावाट का सामना करना पड़ा है। मानव निवास क्षेत्रों में रहने वाले मोर, गोरैया, कोयल आदि पक्षियों की 126 प्रजातियों की संख्या में वृद्धि की संभावना बताई गई है। वहीं चील, बाज आदि पक्षियों में गिरावट दर्ज की गई है। दुनिया के सबसे अधिक जैव विविधता वाले पश्चिमी  घाट में रहने वाले पक्षियों में वर्ष 2000 में 75 प्रतिशत की गिरावट हुई है। रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि महानगरों में आवास, विषाक्त आहार, मोबाइल रेडिएश न, शिकार आदि की वजह से गोरैये की आबादी में जबर्दश्त  गिरावाट आई है। मानव करतूतों की वजह से दिनोंदिन पक्षियों की संख्या घटने से पारिस्थ्तिकीय चक्र का संतुलन भी बिगड़ रहा है।
आज कोरोना महामारी से पूरी दुनिया जूझ रही है। मानव जाति को बचाने के लिए नित्य नए प्रयोग हो रहे हैं। टीकाकरण की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। लोगों की जिंदगी पटरी पर लौटने लगी है। फिर से गाड़ियों की कर्कश,  ध्वनियां, धुएं आबोहवा में जहर घोलने लगे हैं। पर, पिछले वर्ष मार्च से लेकर लाॅकडाउन समाप्त होने तक पर्यावरण प्रदूषण में बहुत कमी आई थी। वातावरण में जहरीले गैसों की मात्रा में भी कम आई थी। इस दौरान आसमान साफ दिख रहे थे। पहाडियों की चोटियां भी दिखने लगी थी। गांव से लेकर शहर तक चिड़ियों की टोली नीले आकाश  में झुंड की झुंड निकलकर मानव को पर्यावरण बचाने का संदेश  दे रही थी। पूरा वातावरण शुद्ध, सौम्य, शांत था। मानवीय गतिविधियों कं कारण फिर से प्रदूषण से वातावरण बिल्कुल असंतुलित होने लगा है।
मुजफ्फरपुर जिले के देवरिया के रंभू कुमार कहते हैं कि गांव में आज भी चिड़ीमार, पक्षियों का आखेट कर रहे हैं। प्रशासन के नाक के सामने खुलेआम बटेर, तितर, हारियल, चमगादड़ आदि पक्षियों का व्यापार बदस्तूर जारी है। नशापान करने वाले व ताकत बढ़ाने वाले शैकीन महंगी कीमत पर खरीदते हैं। दूसरी ओर कीटनाशक,खेतों में डाले जाने वाले रसायन की वजह से मैनी, बगुला, तोते, कौवे आदि असमय मौत के शिकार हो रहे हैं।
भारत में पक्षियों के संरक्षण के लिए दर्जन भर से अधिक पक्षी अभ्यारण हैं। जहां पक्षियों के प्रजनन और संरक्षण  के लिए नित्य नए प्रयोग किए जा रहे हैं। ओखला पक्षी अभ्यारण, दिल्ली-उतर प्रदेश राज्य की सीमा पर स्थित है, जहां 300 से अधिक पक्षियों की प्रजातियों के लिए स्वर्ग माना जाता है। जिम काॅर्बेट नेशनल पार्क, उतराखंड, यहां सर्दियों के मौसम में क्रेन, पेलिकन, गुई बतख, इगल्स आदि दुर्लभ पक्षियों का आवक जारी रहता है। चिलका झील पक्षी अभ्यारण, ओड़िशा प्रवासी पक्षियों के लिए सबसे बड़ा माना जाता है। यहां समुद्री इगल्स, ग्रेलेग गुइज, बैंगनी मूरिन आदि पक्षियों की प्रजातियां देखने को मिलती है। इसके अलावा सुल्तानपुर, सलीम अली, नल सरोवर, गुजरात(उल्लू के लिए मशहूर है), लावा और नेओरा घाटी आदि अभ्यारण दुर्लभ पक्षियों के लिए जाना जाता है।
बहराहाल, कोरोना काल में प्राकृतिक वातावरण की शुद्धता, सौम्यता, शुचिता के कारण दुर्लभ प्रवासी पक्षियों के मौसम और जलवायु के अनुकूलता के कारण आकाश  की असीम ऊँचाइयों को छूते हुए अद्भुत दृश्य  देखने को मिल रहा था। अब धीरे-धीरे ‘पुनः मूषकः भव’ की स्थिति बनती जा रही है। आखेटक आखेट में लगे हैं। बेरोकटोक व्यापार भी जारी है। निरीह प्राणियों के प्रति संवेदनाएं मर रही है। केवल उसके मांस के हम भूखे हैं। हमें याद रखना चाहिए कि पक्षियों से प्राकृतिक की सुंदरता और पवित्रता बरकरार है। मधुरिम ध्वनि नाद से प्रकृति निराली हो जाती है। नीले गगन में पक्षियों का झुंड वातावरण की शुद्धता का पैगाम देते हैं। जरूरत है उन तमाम पर्यावरण व पक्षी प्रेमियों को इन दुर्लभ व विलुप्त हो रहे पक्षियों के संरक्षण की दिशा  में सार्थक प्रयास की। सरकार-शासन की ओर से कानूनी रूप स आखेट व व्यापार पर अंकुश लगाने की।       फोटो:

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