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(लंबी कहानी)


उन्मादिनी

  अमृतांज इंदीवर
शर्माजी का कोचिंग सेंटर इलाके का मशहूर कोचिंग में शुमार था। विद्यार्थियों की तादाद में अप्रत्याशित श्रीवृद्धि हो रही थी। श्रीवृद्धि हो क्यों नहीं क्योंकि शर्माजी गांव के लोगों के लिए भलमानस व आचार्य के रूप में प्रतिष्ठित थे। नवयुवक शर्माजी प्रवचन, भाषण, गणित, कंप्यूटर आदि विषय की जानकारी के लिए अनपढ़ ही नहीं प्रबुद्धजनों के बीच भी कीर्तिमान स्थापित कर लिए थे। इतने के बाद भी जाति-बिरादरी के लोगों की आंखें बंद थी। वे सांसारिक सुख से वंचित थे। अब तो 35वां वसंत भी पतक्षर को हो आया था। पर उनके जीवन में कोई कोमलांगिनी नहीं आयी, जो पर्वतरूपी जवानी को नादमय कर सके। सब्र का बांध टूट चुका था जिसकी परिणति हुई कि रक्त की गर्मी को शांत करने व युवाओं को जवानी की दहलीज पर आनंद के साथ पढ़ाई का नया फाॅर्मूला ढंूढ़ निकाला। अब तो कोचिंग में लड़कों से ज्यादा लड़कियां आने लगी, वैसे-वैस पैसे भी आने लगें। एक समय ऐसा आया कि शर्माजी ने शादी नहीं करने की जिद कर ली।
सुबह पांच बजे कोचिंग के गेट पर सैकड़ों साइकिलों की कतार लगी है। चार कमरे का कोचिंग रंगीन पर्दाें से सज्जा हुआ चमक रहा है। बंद गेट के सामने एक बड़ा सा साईन बोर्ड पर ’शिक्षा संस्कार व विज्ञान के नवीन अनुसंधान के आधार पर दी जाती है’। अपने बच्चों के स्वर्णिम भविष्य के लिए एक बार दाखिला अवश्य कराएं। यह तथ्य एडमिशन कराने वाले परिजनों के लिए नायाब से कम न था। पास के सड़क से गुजरते हुए एक दंपति अपनी बिटिया के भविष्य की कामना करते हुए गुफ्तगू करते हुए कि बिटिया 14 वर्ष की हो गयी है। चलो चलते हैं एडमिशन के बारे में जान-समझ लेते हैं।
(दंपति गेट के अंदर प्रवेश करते हुए) प्रणाम मास्टर साहब!
(एक शिक्षक) प्रणाम! प्रणाम! कैसे आना हुआ ? आइये पधारिये।
मेरी बेटी उन्मादिनी 9वीं कक्षा में है। मैं चाहता हूं कि आपके कोचिंग में कुछ पढ़-लिख जाये। बिल्कुल कल से भेंज दीजिए।
उन्मादिनी अपने इलाके की खूबसूरत लड़कियों में से एक थी। ईश्वर ने उसे फुर्सत से गढ़ था। स्कूल से लेकर मुहल्ले तक उसके अद्भुत रूप-यौवन पर शायद ही कोई शख्स न रीझे । जिधर से चलती बिजली गिराती हुई चलती। उसकी देह पर पुराना से पुराना लिबास चमक उठता था। वह वसंती हवा की तरह रूप-सौंदर्य की प्रतिछाया छोड़ती चलती। कदम पड़ते ही कोचिंग संस्थान के दर्जनों किशोर व शिक्षक चहक उठें। वहां जैसे कयामत आयी हो। रूप-सौंदर्य के आगोश में खो से गएं।
शर्माजी तो जैसे ही रूपवती कन्या का दिग्दर्शन किया कि अनिमेष व देखते रह गएं। आओ, आओ उन्मादिनी! तुम आ गयी समझो सरस्वती का साक्षात दर्शन हो जायेगा। बैठो।
कोचिंग में आधुनिक जमाने के गुरु थे। उनके हाथों में अत्याधुनिक मोबाइल, टैब्स के स्क्रीन पर उंगुलियां फिसलती रहती थी। आखिर आधुनिक गुरु जी जो ठहरे। वे सभी विद्यार्थियों के फेसबुक, वाॅट्सएप दोस्त हैं। जिन्हे रोजाना देश-दुनिया की खबरों के साथ-साथ विभिन्न फिल्मों की पटकथा, वीडियो, फोटो आदि भेंजकर लाइक्स व काॅमेंट लिखने को कहते हैं।  नए विद्यार्थियों के लिए ज्ञानकोष और पुराने विद्यार्थियों के लिए वात्सयायन का शास्त्र उपलब्ध रहता है। शायद ही ऐसे गुरु होंगे जो प्राचीन को नवीन से जोड़कर ज्ञानपिपासुओं का साक्षात्कार कराते हों। अलबता, सभी किशोर-किशोरियां रोमांस, कामाध्याय से लबरेज रहते थे। ऐसी हवा उठती है कि जो विद्यार्थी आइटी नहीं जानेगा वह प्रतिस्पद्र्धा के इस दौर से दूर हो जायेगा।
कोचिंग सेंटर में उन्मादिनी का क्या पैर पड़ा कि विद्यार्थियों की लंबी फेहरिस्त हो गयी और शर्माजी के पौ बारह हो गए। उन्मादिनी की काया ईश्वर ने विशेष मिट्टी से गढ़ी थी।
एकबार शर्माजी की कुत्सित नजरें उन्मादिनी के अंग-प्रत्यंग व कायिक उभारों पर ऐसे घुरने लगती है मानो जैस चांद का प्रेमी चकोर एकटक निहार रहा हो। उसके काश्मीरी सेब जैसे गाल, मृग के समान नयन, कंचुकी के अंदर छोटे-छोटे स्निग्ध उभार, नख से लेकर शिखा तक अर्थात् आपादमास्तक वह किसी स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी, रंभा, मेनका, आदि से कम नहीं। वह कोमलांगिनी सबके दिलों पर राज करने लगी। शर्माजी ने कहा- ‘हे कन्या तुम्हारे रूप और सौंदर्य का मैं कायल हो गया हूं। मेरी दशा दिनांेदिन बिगड़ती जा रही है। तुम साक्षात देवी हो, देवी!’ महोदय ने प्रथम पाठ में कहा कि पूरा संसार काम व अर्थ के फेरे में है। यह विकार तो है पर उसकी प्राप्ति बिना संसार भी सूना-सूना है।
शर्माजी इसके पहले कितनी शिष्याओं को देखा आनंद लिया पर उन्मादिनी के समाने वह सब बेजान व नीरस है। सुंदरी के स्पर्श मात्र से मोक्ष की प्राप्ति हो जाए, कितने शिक्षक केवल गणित, विज्ञान, साहित्य, शास्त्रों का अध्ययन व अध्यापन करके वह आनंद प्राप्त नहीं कर सकते जितना कि इस कामिनी के स्पर्श मात्र से प्राप्त कर लें।
दूसरे दिन शर्माजी कल तक फांकी मारते फिरते थे आज वे स्वतः लड़कियों को पढ़ाने में प्रवृत दिखते हैं। उनके हाथों में टैबलेट्स (हाथ का कंप्यूटर) पर उंगलियां लड़खराते हुए फिसल रही है। सर्वप्रथम फेसबुक, वाॅट्सएप, यू-ट्यूब आदि की बारीकियां साझा किया। सभी विद्यार्थियों को मोबाइल सेट खरीदने की नसीहत दी। देखा-देखी सभी छात्र-छात्राओं ने मोबाइल खरीद लिए। एक-दूसरे से चैट, शेयर, लाइक्स, कौमेंट का दौर चल पड़ा। (छात्रों ने अपने माता-पिता को आधुनिक युग की दुहाई देते हुए वर्तमान स्पद्र्धा में मुकम्मल तैयारी और सिलेबस आदि हेतु मोबाइल की उपयोगिता से अवगत कराया।)
(एक छात्रा से उन्मादिनी प्रसन्न मुद्रा में चर्चा करते हुए-)
‘यह तो कमाल की चीज जान पड़ती है। इसमें अजब-गजब वीडियो व फोटो भी उपलब्ध है।’
छात्रा-‘हां....हां !कल सर ने हमें नामचीन हिरो की फिल्म ‘मर्डर’, जिस्म-1 एवं 2 का फुटेज वाॅट्सएप पर भेंजा था। गजब..मजेदार फिल्म है।’
उन्मादिनी- ‘मेरे टाइमलाइन पर भी पोस्ट करो। मैं भी देखती हूं कि कैसी फिल्म है।’
छात्रा- यह लो भेंज दिया। देखो कितनी अच्छी फिल्म बनायी है।
उन्मादिनी- छिः छिः कितना गंदा और फूहड़ फिल्म है।
छात्रा- ‘धत् तेरे कि तुम कितनी भोली हो। मन से देखो तुम्हारी नसें आनंद से विभोर हो जायेगी।’ सर ने कहा था कि मनुष्य जाति इस आनंद को प्राप्त करने के लिए नाना प्रकार की कोशिशे एवं प्रक्रिया करती है तब जाकर सुख मिलता है। अभी तो असली उम्र है, मजा करने का लुत्फ उठाने का। शादी के बाद तो झमेले में पड़ना है। पड़ोस की चाची नयी-नवेली है। देखती हो दिनभर काम, सास-ससुर की सेवा उपर से बच्चों की देखभाल। यह मौका थोड़े ही बार-बार आता है।’
उन्मादिनी- (सकुचाते हुए) वाकई तुम्हारी बात सुनकर जब इतना मजा आ रहा है, तो  ............
कोचिंग में शनैः शनैः विद्यार्थियों की झड़ी सी लग गयी। पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ मनचाहा प्रेमियों के साथ प्रेमालाप और नजदिकयां बढ़ती गयी। नए छात्र-छात्राओं को उन्मादिनी प्रेम रहस्य और चरमसुख प्राप्ति के रास्ते बताने में आनंद का अनुभव करने लगी। शर्माजी चाइल्ड साइकोलाॅजी का फायदा उठाने लगे। एक-एक करके कमसिन युवतियों सं अंतरंग संबंध स्थापित किया। कोचिंग में आधुनिक उपाय व दवाएं उपलब्ध रहने लगी। खुलम-खुल्ला रोमांस चलने लगा।
आगे और....


 

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