अस्पताल है, डाॅक्टर व दवा नदारद
फूलदेव पटेल |
बिहार के नक्शे में मुजफ्फरपुर को उतर बिहार की अघोषित राजधानी माना जाता है। मुजफ्फरपुर जिला मुख्यालय से 55 कि0मी0 सुदूर दियारा क्षेत्र का एकलौता अस्पताल धरफरी, पिछले दो दशक से उपेक्षा और आराजकता के कारण ठप पड़ा है। अस्पताल पशुओं का चारागाह बन गया है। वहीं अस्पताल के अंदर ओटी व क्लीनिक में रखे दर्जनों उपस्कर, मशीने व अन्य सामग्रियां जंग खा रही हैं। इस अस्पताल से धरफरी, माधोपुर, उस्ती सिगांही, कमालपुर फतेहाबाद, जयमल डूमरी, फुलाड़, जाफरपुर, रतवारा, नेकनामपुर, बाड़ादाउद, विष्णपुर सरैंया वाया जगदीश पुर, चचाही, देवरिया पूर्वी, देवरिया पश्चिमी, मुहब्बतपुर, साहपुर दुबौली, चांद केवारी, हुस्सेपुर रत्ती, हुस्सेपुर, खेमकरना, रुपछपडा, जगदीश पुर धर्मपुर, मनाईन, मोरहर आदि गांवों के लोगों का सहूलियत से मुफ्त व तत्काल इलाज होता था। आज स्थानीय लोगों को झोला छाप डाॅक्टरों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। इमरजेंसी की स्थिति में जूरन छपड़ा जहां सैकड़ों डाॅक्टरों की मंडी है। वहां हजारों रुपए फिजूल खर्च करना पड़ता है। धरफरी अस्पताल बंद हो जाने से करीब चार लाख लोग इलाज से वंचित हो रहे हैं। आम जनता इलाज के अभाव में मर रही है। इस धरफरी स्वास्थ्य केन्द्र से 20 कि0मी0 की दूरी पर पारू पीएचसी हैं। ठीक उतनी ही दूरी पर साहेबगंज पीएचसी है। यहां भी सुविधाओं का घोर अभाव है। प्रसव के व टीकाकरण के अलावा यहां अन्य मरीजों का इलाज नहीं किया जाता। ऐसी स्थिति कमोबेश देश के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित स्वास्थ्य केंद्रों का है। जहां दवा व चिकित्सक के अभाव है। धरफरी अस्पताल अपने हाल पर आंसू बहा रहा है। सरकारें आती हैं, जाती हैं, पर व्यवस्था ज्यों कि त्यों बनी हुई है।
गांव के बुजुर्गों का कहना है कि आज से लगभग 52 वर्ष पूर्व आठ बेड के इस अस्पताल का उद्घाटन बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह के कर कलमांे द्वारा 25 नवम्बर 1954 ई0 को किया गया था। उस समय इसी धरफरी के कारा मंत्री श्री नवल किशोर बाबू थे। जिनके प्रयास से इस अस्पताल का शुभारंभ किया गया था। आमीचंन्द महतो (75 वर्ष) का कहना है कि जब यह अस्पताल चालू था उस समय काफी लोग इलाज के लिए आते थे। इस अस्पताल में चिकित्सक राम नरेश प्रसाद एम डी, जहाँगीर आलम एम डी, फूलदेव बाबू, एम डी, नरेश बैठा, के0 एस एन द्विवेदी आदि पदस्थापित थे। जिन्होंने जनता की खूब सेवा की। गरीबों के इलाज को अपना पुनीत कर्तव्य समझते थे। धरफरी निवासी डाॅ. गणेश पंडित कहते हैं कि यहां पहले सर्जन एवं फिजीशियन डाॅक्टर रहते थे। इस अस्पताल में आॅपरेशन भी एक दिन में दस से पन्द्रह लोगों का होता था। प्रत्येक दिन लगभग सौ से डेढ सौ लोगों का इलाज होता था। आज से लगभग 10 वर्ष पहले ग्रामीण राजेन्द्र ठाकुर, संजीत साह, मुन्ना राय, शिवजी राय, ललन सहनी बालक नाथ सहनी, जलदेव पटेल, सिपाही राय, बबलू साह अखिलेश यादव, पारस नाथ सिह नेवाला, रवीन्द्र कुमार, सिपाही सहनी लखीन्द्र साह आदि ने अनशन किया था। जिस पर सिविल सर्जन मुजफ्फरपुर एवं स्वास्थ्य अधिकारी डाॅ. उमेश चन्द्र शर्मा जी ने अश्वासन दिया था कि इस अस्पताल में सप्ताह में तीन दिन पारू पीएचसी से डाक्टर आकर लोगों का इलाज करेंगे। उस समय से लगभग एक वर्ष तक ठीक-ठाक रहा। फिर कतिपय कारण से डाक्टर साहब का आना जाना बंद हो गया। इस अस्पताल में जमीन दाता स्वर्गीय नवल किशोर बाबू जो लगभग दो एकड़ जमीन दान किए थे। ग्रामीण श्री किशोरी सिंह (75 वर्षीय) ने बताए कि इस अस्पताल में हर तरह से इलाज हुआ करता था। डाक्टर साहब लोग भी खुशमिजाज थे। उनका आवास भी अस्पताल में ही था। जहां सपरिवार डाॅक्टर व नर्स रहते थे। स्थानीय होमियो पैथ के डाॅक्टर बीएस रमन कहते हैं कि अस्पताल में बड़ा व छोटा आॅपरेशन, प्रसव, बवासीर, आंत संबंधी कई अन्य बीमारियों का भी आॅपरेशन आसानी से हो जाता था। जब भी कोई मरीज गया, डाक्टर साहब तुरंत इलाज शुरू कर देते थे। इस से गरीब लोग लाभान्वित होते थे। आज इस अस्पताल के बंद होने से बहुत ही परेशानी हो रही है। डाॅक्टर राम नरेश प्रसाद जिनका वर्ष 2003 में तबादला हो गया। तब से आज तक कोई डाक्टर की नियुक्ति नही हुई हैं। उस समय इसी धरफरी स्वास्थ केन्द्र में दो डाक्टर, रहते थे। दो नर्स, दो कम्पाउडर, एक सफाई कर्मी ये सभी लोग का अस्पताल परिसर में ही रहते थे। इस बाबात पूछने पर वर्तमान जिला पार्षद श्री देवेश चन्द्र प्रजापति ने बताया कि जब-जब जिला पार्षद की मीटिंग होती हैं, उसमंे सभी जिला प्रशासन के समक्ष ‘धरफरी स्वास्थ केन्द्र’ की बात रखता हूँ। इसमें अविलम्ब चिकित्सक की नियुक्ति हो। इस संबंध में सिविल सर्जन मुजफ्फरपुर कहते हैं कि चिकित्सक की नियुक्ति पीएचसी प्रभारी पारु ही बता सकते हैं। स्वास्थ्य विभाग बिहार सरकार पटना द्वारा जो चिकित्सक की नियुक्ति जिला में होती हैं उसके अनुसार प्रखण्डवार नियुक्ति करते हैं इस संबंध में प्रखण्ड प्रभारी बताएंगे कि वे कैसे करते हैं। वहीं पीएचसी पारु के प्रभारी डाॅ.उमेश चन्द्र शर्मा कहते हैं कि जिला से एक दो चिकित्सक की नियुक्ति हुई हैं। सच्चाई तो यह है कि अस्पताल में नियुक्त प्रभारी केवल निरीक्षण करने आते हैं। स्वास्थ्य सेवा से इनका कुछ लेना-देना नहीं है। चिकित्सा का काम जमीन पर कम कागज पर अधिक हो रहा है। ऐसे में पूरे इलाके में स्वास्थ्य सेवा बहाल होने के बजाए अधिकारी के हिला-हवाली में फंसा हुआ है। स्थानीय लोगों में असंतोष का आलम है। प्रतिदिन सैकड़ों लोगों को शहर जाकर मेडिकल मंडी में जेब कटवाना पड़ रहा है। इस संबंध में प्रखण्ड प्रमुख श्रीमती रीता देवी ने कहा कि मंै प्रमुख फंड से धरफरी स्वास्थ केन्द्र का जीर्णोंधार करायी हूँ। इसमें लगभग 14.5 लाख की लगात से हुआ है। मीरा का कहना है कि अविलम्ब चिकित्सक की नियुक्ति होगी। इस अस्पताल परिसर में बिहार सरकार के द्वारा 2020-21 में एक चबूतरा का नवनिर्माण किया जा रहा है जिसका उद्घाटन बिहार के पूर्व कृषि मंत्री व निवर्तमान विधायक श्री राम विचार राय ने किया है। उन्होंने कहा कि हर हाल में चिकित्सक के लिए सदन में बात रखेंगे। जबकि तल्ख सच्चाई है कि निवर्तमान विधायक व मंत्री 20 साल रह चुके हैं बावजूद अस्पताल में सेवा बहाल नहीं हुई। जब-जब चुनाव आता है, केवल अष्वासन व घोषणाएं होती है। बिहार में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। चारों तरफ अपने-अपने दल के नेताओं का जमघट लग रहा है। पर मृत प्राय अस्पताल की ओर किसी नेता का ध्यान नहीं। सभी दल के नेता व पार्टी कार्यकर्ता को जात-पात व धर्म-संप्रदाय के नाम पर वोट चाहिए। पूर्व संरपच श्री राज कुमार दास, उपेन्द्र पटेल, सुरेन्द्र कुमार, बिहारी साह, गोपाल प्रसाद, ओम प्रकाश साह, अविनाश यादव, दीपक भगत, सुनील यादव आदि समाजसेवियों ने संकल्प लिया है कि अस्पताल में ‘चिकित्सक नहीं तो वोट नहीं।’
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